Raghuveer Sharma
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रसखान रत्नावली (सवैया -129)
सखियाँ मनुहारि कै हारि रही
भृकुटी को न छोर लली नचयौ।
चहुवा घनघोर नयौ उनयौ नभ नायक
ओर चित्ते चितयौ।
बिकि आप गई हिय मोल लियौ
रसखान हितू न हियों रिझयौ।
सिगरो दुःख तीछन कोटि कटाछन काटि कै सौतिन बाँटि दियौ।।
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